धुप्प अँधेरे में
गिरती बिजलियों की रौशनी में
माचिस पा जाता कोई हाथ .
कमरे में सुबह सवेरे
पंख फड़फड़ाते मिलती
छिपकलियों के चंगुल से सही सलामत बच निकली एक तितली
भूखी कमजोर और आश्रयहीन
लेकि भीख मांग- मांग कर जी जाती
स्टेशन के चौराहे पर ,एक वृद्धा.
सालों साल किताबों से जूझता , तानों से टूटता
लेकिन अंततः एक दिन
अख़बार के एक कोने में नजर आ जाता एक सफल लड़का
'स्व' तक सीमित और दिखावे वाले महानगर में भी
बेहोशी आ जाने पर अपने सहयात्री को पानी दे देता
कोई अनजान शख्स .