Sunday, December 27, 2015

रोटी

               रोटी

अपाहिज जग्गू ने, हरी मिर्च के नमक के साथ खाई.
कल्लू की मां ने, मीठे सफेद  प्याज के साथ खाई.
फटी शॉल से जांघें छिपाती-
पागल औरत ने ,दाल में सान के खाई.

नक्सली ने अधकच्ची खाई.
पुलिसवाले ने हड़बड़ी में खाई.
नेता ने दलित के घर-
 मीडीया को बुला -बुला के खाई.


नेता चॅनेल को इंटरव्यू देने लगा.
 पुलिसवाला ट्रॅफिक कंट्रोल में जुट गया.
 नक्सली धीरे से  चहलकदमी करने लगे.
पागल औरत को फिर से कोई वहशी घूरने लगा.
कल्लू की माँ पानी लाने चल दी,
अपाहिज जग्गू व्हील चेयर घिसते हुए-
गली की ओर बढ़ने लगा.






Friday, June 19, 2015

घराट वक़्त और प्यार

उसे लगा
वो फिर आएगी
घराट पर,
आटा पिसवाने
मड़ुए का।

वो इंतज़ार
करता रहा
उस जगह,
जहाँ पहले कभी-
वो मड़ुए की पिसती चटख़नों
और गिरते पानी के
 तड़ तड़ के बीच,
एक दूसरे से
नज़रें मिला लिया करते थे।


वो इंतज़ार
करता रहा
उस जगह,
जहाँ पहले कभी
घराट हुआ करता था।