Thursday, January 23, 2014

आवेश में हूँ .


तेरह बूढ़ों की नसों में
रेंगता रहा लहू,
और एक आदिवासी लड़की
की चीख पुकार,
दब गयी
उनके सामूहिक शोर शराबे में .

कोई बताए कि क्यों,
इन बूढ़े ठरकी लोगों को,
 बैठा दिया जाता है,
पारंपरिक पंचायतों में ?

और कैसे बन जाती हैं,
ऐसी वहशी  योजनायें,
इन बूड़ी जर्जर पंचायतों में?
जो आज तक
स्कूल की टूटी चारदीवारी
सही नहीं करवा पाईं.

कोई बताए कि क्यों
'कम्युनिटी पोलिसिंग'  के नाम पर
सही वक़्त पर,
पोलीस के हाथ में
आ जाता है ठेंगा?

और औरतें,
जिन्हें अमूमन पता होता है
मुहल्ले में पक रही खिचड़ी का,
क्यों बेख़बर रहती हैं,
इस खबर से
कि कंगारू पंचायत
ने एक आदिवासी लड़की
के साथ सामूहिक बलात्कार
का फरमान सुनाया है?



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