Sunday, November 28, 2010

"प्रतिज्ञा"

झंझावातों की सजिश है
आज माहौल शांत रखा गया है ,
ताकि, जब मैं बेख़ौफ़ होकर बाहर निकलूं 
-तो मुझे दबोच लिया जाए.

लेकिन मुझे पता है, 
इस इलाके का  इतिहास 
माहौल इतना शांत कभी नहीं  रहा है.

लेकिन फिर भी  मैं जाऊंगा 
क्योंकि जो रुक  गया  आज 
तो  कभी चल नही पाउँगा.
और, खुद को बचाने के क्रम में
आज कुछ घिस भी गया,
तो मलाल नही
क्योंकि मुझे खुद को जवाब देना होता है .


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