साइकिल से तेज दौड़ा था वो,
लेकिन बदल दिया गया
खेल का नियम कानून .
नश्तर से तेज नाख़ून थे उसके
लेकिन झुका दिया गया
उसे तलवारों से घेरकर .
बर्फ सी साफ थी उसकी नियत
पर गला दिया गया था उसे
पैसों कि अंधी "लू" में
वो क्या करता ?
कब तक प्रतिरोध करता ?
झुकना तो था कभी
झुक गया अभी.
Sunday, January 31, 2010
Thursday, January 21, 2010
"Kuch is Tarah tha Bachpan"
कुछ इस तरह था बचपन......
न शर्तें कुछ करने की
ना परतें कुछ गढ़ने की
ना बेवजह की मारामारी
न सर हिलाना
बेतुकी बातों में.
न सर खपाना ,
गहराती रातों में.
ना ताने देती "बेकारी"
माँ का बुला बुलाकर
निवाला खिलाना
भरी दुपहरी में डोलना
और गंदे बनकर आना
फिर डांट खाने की बारी
रात को टी-वी के सामने
पूरे परिवार का जम जाना
छोटे भाई का बेवजह उलझ पड़ना
और माँ का बीचबचाव को आना
दिखती मेरे बड़े होने की लाचारी
माँ को आँखें दिखाना
फिर प्यार से लिपट जाना
फिर रोना आँचल पे और
भिगोना साड़ी का कोना
फिर माँ के आंसुओं की बारी
......कुछ इस तरह था बचपन.
न शर्तें कुछ करने की
ना परतें कुछ गढ़ने की
ना बेवजह की मारामारी
न सर हिलाना
बेतुकी बातों में.
न सर खपाना ,
गहराती रातों में.
ना ताने देती "बेकारी"
माँ का बुला बुलाकर
निवाला खिलाना
भरी दुपहरी में डोलना
और गंदे बनकर आना
फिर डांट खाने की बारी
रात को टी-वी के सामने
पूरे परिवार का जम जाना
छोटे भाई का बेवजह उलझ पड़ना
और माँ का बीचबचाव को आना
दिखती मेरे बड़े होने की लाचारी
माँ को आँखें दिखाना
फिर प्यार से लिपट जाना
फिर रोना आँचल पे और
भिगोना साड़ी का कोना
फिर माँ के आंसुओं की बारी
......कुछ इस तरह था बचपन.
Saturday, January 16, 2010
Fayda
तुम आज जा रही हो
मुझे मालूम है-
कल आ जाओगी
और अगर भी रोक लें कोई
मजबूरियां तुमको
तो भी याद करोगी,
मुझको हमेशा
क्योंकि -
तुम भूल नही सकती
मेरे साथ गुजरे कुछ लम्हे .
मैंने हर पल
जीना चाहा है ,तुम्हारे साथ.
तुम्हारी मजबूरियां भी
महसूस की हैं ,
और रोया भी हूँ ,
तुम्हारा साथ पाने के लिए.
मुझे अफ़सोस नही,
कि तुमने-
मेरा फायदा उठाया .
मैं तो हमेशा से चाहता हूँ ,
कि तुम हमेशा फायदे में रहो.
क्योंकि तब मैं खुद को,
जीतता सा महसूस करता हूँ.
मुझे मालूम है-
कल आ जाओगी
और अगर भी रोक लें कोई
मजबूरियां तुमको
तो भी याद करोगी,
मुझको हमेशा
क्योंकि -
तुम भूल नही सकती
मेरे साथ गुजरे कुछ लम्हे .
मैंने हर पल
जीना चाहा है ,तुम्हारे साथ.
तुम्हारी मजबूरियां भी
महसूस की हैं ,
और रोया भी हूँ ,
तुम्हारा साथ पाने के लिए.
मुझे अफ़सोस नही,
कि तुमने-
मेरा फायदा उठाया .
मैं तो हमेशा से चाहता हूँ ,
कि तुम हमेशा फायदे में रहो.
क्योंकि तब मैं खुद को,
जीतता सा महसूस करता हूँ.
Monday, January 11, 2010
Break up
मैं हार गया,
तुमको मनाते मनाते प्रिये
अब और नही
उठाया जाता
इस रिश्ते का बोझ ...
अब जाना चाहता हूँ तुम्हारे
सम्मोहन पाश से दूर,
और तुमको निकाल फेंकना चाहता हूँ
अपने दिल की कब्जाई जमीन से .
एक मुद्दत से
हँस नहीं पाया हूँ ,
-सिर्फ तुम्हारी वजह से,
अब खुलकर हँसना चाहता हूँ .
अपने हर ठहाके से
बताना चाहता हूँ
-कि तुम्हारे बिना जिंदगी
पहले से कहीं बेहतर हो सकती है .
Thursday, January 7, 2010
"mera aaj "
आजकल कुछ उखड़ी उखड़ी
बातें करने लगा हूँ .
दोस्तों से बिना वजह ,
झगड़ने लगा हूँ ,
कभी सोचता हूँ ,
रोक लगा दूँ हंसी पर .
जो मेरे आस पास -
माहौल मैं घुली है ...
जबकि एक समय इसी
हंसी का मैं सबसे बड़ा
जमाखोर हुआ करता था
आज बेशक खुद से नाराज रहता हूँ .
... जब खुद से शांत हो जाऊंगा,
वापस पुरानी हंसी पर आ जाऊंगा.
बातें करने लगा हूँ .
दोस्तों से बिना वजह ,
झगड़ने लगा हूँ ,
कभी सोचता हूँ ,
रोक लगा दूँ हंसी पर .
जो मेरे आस पास -
माहौल मैं घुली है ...
जबकि एक समय इसी
हंसी का मैं सबसे बड़ा
जमाखोर हुआ करता था
आज बेशक खुद से नाराज रहता हूँ .
... जब खुद से शांत हो जाऊंगा,
वापस पुरानी हंसी पर आ जाऊंगा.
Wednesday, January 6, 2010
Golgappe
कई बार
जब सड़क पर ,
गोलगप्पे वाला
दिख जाया करता है ,
मैं भी लुफ्त लेने पहुँच जाता हूँ .
लेकिन मेरे लुफ्त लेने का तरीका
थोडा हटकर होता है -
मैं गिनकर गोलगप्पे लेता हूँ
और गिनने कि इसी प्रक्रिया मैं
स्वाद कहीं पीछे छूट जाता है .
सोचता हूँ-
मुझसे बेहतर गोलगप्पों का स्वाद
वो लोग लेते हैं
जिन्हें सभ्य समाज ' दिहाड़ी वाला'( मजदूर) कहता है .
जब सड़क पर ,
गोलगप्पे वाला
दिख जाया करता है ,
मैं भी लुफ्त लेने पहुँच जाता हूँ .
लेकिन मेरे लुफ्त लेने का तरीका
थोडा हटकर होता है -
मैं गिनकर गोलगप्पे लेता हूँ
और गिनने कि इसी प्रक्रिया मैं
स्वाद कहीं पीछे छूट जाता है .
सोचता हूँ-
मुझसे बेहतर गोलगप्पों का स्वाद
वो लोग लेते हैं
जिन्हें सभ्य समाज ' दिहाड़ी वाला'( मजदूर) कहता है .
Tuesday, January 5, 2010
"Nikamme Kavi"
निक्कमे होते है वो लोग-
जो अपनी सोच
एक कविता कि शक्ल मैं
ले आते हैं .
इन लोगों को लगता है ,
कि कविता लिखना
एक आलीशान काम होता है .
जिसे हर कोई नही कर सकता
इस प्रजाति के लोग
"क्रिएटिव" होने का झूठा
जाल फेंकते रहते हैं-
उन लोगों पर ,जिनको
फुर्सत नही रोजमर्रा के कामों से .
कोई बोले इनसे कि
इनके वो अंगारे-
जो कविताओं मैं आग उगलते हैं
जमीन पर आंच सुलगाकर दिखाएं ?
इतनी हिम्मत की तो आप देखेंगे-
"कुकुरमुत्ते" कि तरह उग आये ये
"तथाकथित" कवि धीरे धीरे
"लुप्तप्राय" हो जाते है .
जो अपनी सोच
एक कविता कि शक्ल मैं
ले आते हैं .
इन लोगों को लगता है ,
कि कविता लिखना
एक आलीशान काम होता है .
जिसे हर कोई नही कर सकता
इस प्रजाति के लोग
"क्रिएटिव" होने का झूठा
जाल फेंकते रहते हैं-
उन लोगों पर ,जिनको
फुर्सत नही रोजमर्रा के कामों से .
कोई बोले इनसे कि
इनके वो अंगारे-
जो कविताओं मैं आग उगलते हैं
जमीन पर आंच सुलगाकर दिखाएं ?
इतनी हिम्मत की तो आप देखेंगे-
"कुकुरमुत्ते" कि तरह उग आये ये
"तथाकथित" कवि धीरे धीरे
"लुप्तप्राय" हो जाते है .
Patang
पतंग के पीछे
बदहवास से भागते कुछ बच्चे
मेरी साइकिल से टकराते टकराते बचे
..मैंने सोचा
आठ आने की पतंग
के लिए ये बच्चे.......
लेकिन मैं गलत था .
बात चार आने या आठ आने की नही थी .
बात थी, उस "जीत" की ख़ुशी की-
जो बच्चों को होती थी,
कटी पतंग को लूटने मैं .
और उनको पता था कि उम्र मैं बड़े लोग,
साइकिल और स्कूटर आहिस्ता चलाते हैं .
बदहवास से भागते कुछ बच्चे
मेरी साइकिल से टकराते टकराते बचे
..मैंने सोचा
आठ आने की पतंग
के लिए ये बच्चे.......
लेकिन मैं गलत था .
बात चार आने या आठ आने की नही थी .
बात थी, उस "जीत" की ख़ुशी की-
जो बच्चों को होती थी,
कटी पतंग को लूटने मैं .
और उनको पता था कि उम्र मैं बड़े लोग,
साइकिल और स्कूटर आहिस्ता चलाते हैं .
Friday, January 1, 2010
koshish
मैंने कुछ नए लोग जोड़े हैं
अपने दायरे मैं
कुछ नयी बातों पे अमल
...लाने की कोशिश हो रही है .
जिन परिंदों की आवाज़
से डरता रहा मैं अब तक
अब उनका अर्थ
...जानने की कोशिश हो रही है .
मुझे लगता है जो
और होता जो सच है
फर्क की खाई
...पाटने की कोशिश हो रही है .
उम्मीद है कि-
कुछ जुगनू, एक रात
छत पर टिमटिमाएंगे
...बुलाने की कोशिश हो रही है.
अपने दायरे मैं
कुछ नयी बातों पे अमल
...लाने की कोशिश हो रही है .
जिन परिंदों की आवाज़
से डरता रहा मैं अब तक
अब उनका अर्थ
...जानने की कोशिश हो रही है .
मुझे लगता है जो
और होता जो सच है
फर्क की खाई
...पाटने की कोशिश हो रही है .
उम्मीद है कि-
कुछ जुगनू, एक रात
छत पर टिमटिमाएंगे
...बुलाने की कोशिश हो रही है.
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