Friday, December 17, 2010

**तुम**

कितने रोज  हुए
तुमसे मिला नहीं

अबकी सोचा था
एक बार फिर
साथ में बैठकर ,
आसमान में -
तरह तरह की
शक्लें  बनाते बादल देखेंगे

और शाम  ढलते ढलते 
चुपके से , हाथ
पकड़कर  चलेंगे-
उसी  सड़क पर .
जब तक कि-
जान पहचान वालों के ,
घर नही आ जाते .

लेकिन
तुम ना आ पाई
और मैं भी-
हिम्मत न जुटा पाया
प्रश्न पूछती तुम्हारी आँखों का
सामना करने का .

लेकिन ,
वो शक्ल बनाते बादल .
जानते हैं तुम्हारी अहमियत आज भी .
उनको पता है ,
जब कभी अकेला होऊंगा
छत पर ,
तब तुम्हारी याद
खुद ब खुद पास आ जाएगी .





Friday, December 3, 2010

nakhoon

बहुत फख्र हुआ था
उसको
अपने नाखूनों पर
जब पड़ोसियों ने
कई बार
उनके
तीखेपन का
जिक्र किया था .

और उसने
बड़े दुलार से
अपने नाखूनों को
नेलपौलिश से सहलाया भी था.

लेकिन आज
शादी के महज
कुछ  दिन बाद
पति ने बेवजह जब 
उसकी पिटाई कर दी
तो उसे नाखूनों की
हकीकत
समझ आई

बचपन का उसका भुलावा
उसके नाखून तीखे हैं
जाता रहा

उसको पता चल गया
नाखून लड़ नही पाते
पैर के नाखूनों से
और जब जरुरत होती है
तो  नाखून टूट जाते हैं.

Sunday, November 28, 2010

"प्रतिज्ञा"

झंझावातों की सजिश है
आज माहौल शांत रखा गया है ,
ताकि, जब मैं बेख़ौफ़ होकर बाहर निकलूं 
-तो मुझे दबोच लिया जाए.

लेकिन मुझे पता है, 
इस इलाके का  इतिहास 
माहौल इतना शांत कभी नहीं  रहा है.

लेकिन फिर भी  मैं जाऊंगा 
क्योंकि जो रुक  गया  आज 
तो  कभी चल नही पाउँगा.
और, खुद को बचाने के क्रम में
आज कुछ घिस भी गया,
तो मलाल नही
क्योंकि मुझे खुद को जवाब देना होता है .


Sunday, November 21, 2010

"udaseenta "

पहाड़ से टूटकर
कुछ पत्थर
आ गिरे रोड पर
और अगले ही दिन
अखबारों के मुख पृष्ठ पर
चर्चे थे-
अवैध खनन और 
सरकार की लचीली फ़ॉरेस्ट नीति के .
माफियाओं और नेताओं  के आगे झुकती
बयूरोक्रेसी की रीति के .

लोगों ने भी  चाय की दुकानों में
बैठकर खूब परिचर्चा की
कुछ लोगों ने  तो नारे भी लगाये
और कुछ लोग मज़े मज़े में
सरकारी बस फूक आये .

ऐसे ही कुछ दिनों तक
होता  रहा हो हल्ला
और उसके बाद, अखबारों ने
मुख पृष्ठ बदल लिया
और लोगों ने करवट .

Saturday, September 18, 2010

Raakh.......

अंगीठी की
राख के नीचे
दबी एक चिंगारी
भीगती रही बारिश में ,
रात भर .

लेकिन
किसी तरह ,
बचाकर रखा ,
उसने ,खुद का वजूद.

और सुबह,
जब किसी ने
नयी, हरी लकड़ियों को
जलाने के लिए
फूंक मारी, उस राख में
तो  फिर से जी पड़ी
ये चिंगारी ..

सोचता हूँ मैं- 
इस धधक के लिए
 ज्यादा जरुरी क्या  है ?
चिंगारी का ,
खुद को जिन्दा रखना ,
या किसी राख फूंकने वाले का होना


Thursday, September 16, 2010

Darwaje par ugi kuch ghasein

दरवाजे पर उगी कुछ घासें
बड़ी खौफजदा रहती थीं 
सफाईपसंद अपनी  मालकिन से
कि जाने कब उनको  उखाड़कर
वहां पर प्लास्टिक का गमला
रख लिया जाएगा

आखिर शहरों में
पौंधों का काम
घर आये मेहमान को
इम्प्रेस करना ही तो होता है

और यहाँ तो उनकी  वजह से
कीड़े मकोड़ों के  आने का खतरा
बना रहता था

यद्धपि कीड़े  मकोड़ों ने
शहर के इंसानों को भांप लिया था
इसलिए वो साँपों से दूर ही  रहते थे

लेकिन बेबस घासें करतीं क्या
उनकी इंसानों के आगे चली कब  है
 और अगले ही दिन
एक खूबसूरत सा गमला
प्लास्टिक के दो फूल लगा लाया

घासें फेंक दी गयीं
कुछ जानवरों ने अपनी पसंद की घासें चुनकर  खा लीं
और बची हुई गर्मी में मर गयीं....


Monday, September 13, 2010

wo gaye hain bahut door mana......

आज देखकर उनको अचानक सामने...

एक आंसू ढीला होकर ,
आँखों से टूट पड़ा
बटन की मानिंद .
 मैं कोशिश करने लगा -
उसको आँख मैं जकड़े  रखने की

बात हुई उनसे
और  फिर बात निकल आई
गुजरे वक़्त के ,किसी रोज़ के कुहासे में
उनका हाथ पकड़े रखने की
 
वो गए हैं बहुत दूर
मेरी लापरवाही  से माना
लेकिन आदत बना ली है अब
उनसे जुडी हर चीज़ के हक मैं
झगड़ा करने की


Saturday, June 5, 2010

RAjdhani ExpreSS

राजधानी एक्सप्रेस---

एक  लावारिस सी लाश
फिर  पाई  गयी
 रेल  की पटरियों  के  बीच

हमेशा  की  तरह 
शिनाख्त नहीं  हो पा  रही थी 
और suicide नोट ढूंढने के
प्रयास  भी  बेकार जा रहे थे  .

वैसे पड़े लिखों के बाज़ार में
ये बात कम लोग जानते हैं
की anpad  लोग मरते  समय   
इस किस्म के  नोट
नही लिखा करते हैं

बहरहाल ...मुसाफिर  कोस  रहे  थे
मरने  वाले  को
जिसकी  वजह  से  उनकी
राजधानी  की   बेलगाम  रफ़्तार  मैं
अनायास  खलल  आ  गया  था. 

और   उस  वक्त  अन्दर  राजधानी  के  A .C कोच   मैं  
विचारों  का गहन  मंथन   हो  रहा  था -
एक  महाशय  तिलमिला  कर  बोल  पड़े -
ये  भूखे  भिखमंगे   भी मरने 
पटरियों  पे   चले  आते  हैं

अंदाजा शायद  सही  था....
पटरियों  पर   खाना  ढूँढने के  प्रयास  में
ट्रेन  के  पहिये-
इस  जिन्दा  आदमी   को  निगल  गए  थे .......

Sunday, April 11, 2010

purane gaon ka ek kabristan

पुराने गाँव का एक
कब्रिस्तान
जहाँ
बच्चे दिन  में भी
खेलने
से कतराते थे
एक बार फिर
सुर्ख़ियों मैं था

कारण कि-

जब से वहां
ऊँची जाती
वाले कुछ लोगों
को दफनाया गया था
तब से रूहानी आवाजें
कुछ बढ सी गयी थीं.

ओझा का सुझाव आया
नीची जात वाले
लाशें
यहाँ न दफनायें .....

और तब  पंचायत मैं  तय हुआ
कि एक नया
कब्रिस्तान
नीची जात वालों के लिए बनाया  जाएगा .

...गाँव वाले सोच रहे थे
कि चलो  कमसकम अब तो
ये ऊँची नीची जात की रूहें
झगडेंगी नही ............

Monday, March 15, 2010

"jeewan"

जीवन संघर्षों  की
आरामगाह है
इस सराय मैं एक रात्री ठहरकर
एक अनजाने रास्ते पर
खुद को चलाया  जाता है

जीवन आराधनाओं की
दरगाह है
धीरज ध्वस्त हो  कभी 
तो मानसिक संतुलन  पाने
यहाँ आया जाता है

जीवन कल्पनाओं की
कब्रगाह है
नयी कृतियों को को गढ़ा जाता है
और पुरानी जिजीविषाओं  को
दफनाया  जाता है

जीवन एक  सतत गूंजती आह है.. .
आरामगाह है...दरगाह है ...कब्रगाह है .....!!

Wednesday, March 10, 2010

Awazein wapas karne wala Kuan........

बचपन में मेरे घर के पास
एक कुआँ होता था..
हम बच्चों ने -उसका नाम रखा था
आवाजें वापस करने वाला कुआँ .

इस कुँए के सामने
कोई आवाज़ निकालो
तो यह हूबहू
वैसी ही आवाज़ सुना देता था .

एक बच्चे  की तरह
बड़े लाड प्यार से
पला था यह  कुआँ
और हो भी क्यों न...

पूरे  गाँव  की
कमजोर वाटर सप्लाई के खिलाफ
यह बड़ी मजबूती से
खड़ा रहता था.

इस कुँए की
सफाई की जाती थी
ईटों  की आड़ लगाकर
मिटटी और धूल को-
दूर किया जाता था
और इससे गुजरने वाले
हर बर्तन को साफ़ होना होता था

 लेकिन...आज
एक  बुरी खबर आई है
इस आवाजों वाले कुँए में
पानी का तल
कम होता जा रहा है...

गाँव मैं लोग कह रहे हैं
कुआँ अपनी
जिम्मेदारी से
मुकर रहा है...

कुआँ खामोश है...
किसी आरोप  का
कोई जवाब नही देता
कई पुश्तें पली बड़ी हैं
इसके  पानी से
ये भी हो सकता है
अब उम्र हो गयी  हो....
लेकिन  ये कुआँ है साहब ...
...कौन सुनेगा इसकी

Monday, February 15, 2010

TATA bye bye Gaon walo........

एक कच्चा  रास्ता
जिस पर सारा गाँव चला करता था
एक दिन  रातों रात सीमेंटेड हो गया
समझदार लोग बोले
डिवेलपमेंट होने वाला है ...
बात सही निकली
पता चला कि
बगल के गावों की सारी जमीन
खरीद ली गयी है
किसी इंडस्ट्री  के लिए

समझदार लोग फिर बोले
चलो इलाके का  भला होगा
हमारे बच्चों को नौकरी मिलेगी
और हुआ भी यही
गाँव के नौजवानों को
उनके पुरखों की जमीन पर
मजदूर या चौकीदार बना दिया गया.

समझदार लोग फिर कुछ सोचने लगे
तब तक गाँव के
उस सीमेंटेड रास्ते पर
एक बोर्ड लगा  दिया गया था
लिखा था-
"नो एंट्री विध -आउट परमिशन"

Sunday, January 31, 2010

Imandari

साइकिल से तेज दौड़ा था वो,
लेकिन बदल दिया गया
खेल का नियम कानून .

 नश्तर से तेज नाख़ून थे उसके
लेकिन झुका दिया गया
उसे तलवारों से घेरकर .

बर्फ सी  साफ थी उसकी नियत
पर गला  दिया गया  था उसे
पैसों कि अंधी "लू" में

वो क्या करता ?
कब तक प्रतिरोध करता ?
झुकना तो  था कभी
झुक गया अभी.
 

Thursday, January 21, 2010

"Kuch is Tarah tha Bachpan"

कुछ इस तरह था  बचपन......

न शर्तें कुछ करने की
ना परतें कुछ गढ़ने की
ना बेवजह की मारामारी

न सर हिलाना
बेतुकी बातों में.
न सर खपाना ,
गहराती रातों में.
ना ताने देती "बेकारी"

माँ का बुला बुलाकर
निवाला खिलाना 
भरी दुपहरी में  डोलना
और गंदे बनकर आना
फिर डांट खाने की बारी

रात को टी-वी के सामने
पूरे परिवार का जम जाना
छोटे भाई का बेवजह उलझ पड़ना
और माँ का बीचबचाव को आना
दिखती मेरे बड़े होने की लाचारी

माँ को आँखें दिखाना
फिर प्यार से लिपट जाना
फिर रोना आँचल पे और
भिगोना साड़ी का कोना
फिर माँ के आंसुओं की बारी

......कुछ इस तरह था बचपन.

Saturday, January 16, 2010

Fayda

तुम आज जा रही हो
मुझे मालूम है-
कल आ जाओगी
और अगर भी रोक लें कोई
मजबूरियां तुमको

तो  भी याद करोगी,
मुझको हमेशा
क्योंकि -
तुम भूल नही सकती
मेरे साथ गुजरे कुछ लम्हे .

मैंने हर पल
जीना चाहा है ,तुम्हारे साथ.
तुम्हारी मजबूरियां भी
महसूस की हैं ,
और रोया  भी हूँ ,
तुम्हारा साथ पाने के लिए. 

मुझे अफ़सोस  नही,
कि तुमने-
मेरा  फायदा उठाया .
मैं तो  हमेशा  से चाहता हूँ ,
कि तुम हमेशा फायदे में रहो.
क्योंकि तब मैं खुद को,
जीतता सा महसूस करता हूँ.

Monday, January 11, 2010

Break up



मैं हार गया,
तुमको मनाते मनाते प्रिये
अब और नही
उठाया जाता
इस रिश्ते  का बोझ ...

अब जाना चाहता हूँ तुम्हारे
सम्मोहन पाश से दूर,
 और तुमको निकाल फेंकना चाहता हूँ
अपने दिल की कब्जाई जमीन से .

एक मुद्दत से
हँस नहीं पाया  हूँ ,
-सिर्फ तुम्हारी वजह से,
अब खुलकर हँसना चाहता हूँ .

अपने हर ठहाके से
 बताना चाहता हूँ 
-कि तुम्हारे बिना जिंदगी
 पहले से कहीं बेहतर हो सकती है .

Thursday, January 7, 2010

"mera aaj "

आजकल कुछ उखड़ी उखड़ी
बातें करने लगा हूँ .
दोस्तों से बिना वजह  ,
झगड़ने लगा हूँ ,

कभी सोचता हूँ ,
रोक लगा दूँ हंसी पर .
जो मेरे आस पास -
माहौल मैं घुली है ...

 जबकि  एक समय इसी
हंसी का मैं सबसे बड़ा
जमाखोर हुआ करता था

आज बेशक खुद से नाराज रहता हूँ .
 ... जब खुद से शांत हो जाऊंगा,
वापस पुरानी हंसी पर आ जाऊंगा.

Wednesday, January 6, 2010

Golgappe

कई बार
जब सड़क पर ,
गोलगप्पे वाला
दिख जाया करता है ,
मैं भी लुफ्त लेने पहुँच जाता हूँ .

लेकिन मेरे लुफ्त लेने का तरीका
थोडा  हटकर होता है -
मैं गिनकर गोलगप्पे लेता हूँ
और गिनने कि इसी प्रक्रिया मैं
स्वाद कहीं पीछे छूट जाता है .

सोचता हूँ-
मुझसे बेहतर  गोलगप्पों का स्वाद
वो लोग  लेते हैं
जिन्हें सभ्य समाज  ' दिहाड़ी वाला'( मजदूर) कहता है .

Tuesday, January 5, 2010

"Nikamme Kavi"

निक्कमे होते है वो लोग-
जो अपनी सोच
एक कविता कि शक्ल मैं
ले आते हैं .

इन लोगों को लगता है ,
कि कविता लिखना
एक  आलीशान काम होता है .
जिसे हर कोई नही कर सकता 

इस प्रजाति के लोग
"क्रिएटिव" होने का झूठा
जाल फेंकते रहते हैं-
उन लोगों पर ,जिनको
फुर्सत नही रोजमर्रा के कामों से .

कोई बोले इनसे कि
इनके वो  अंगारे-
जो कविताओं  मैं  आग उगलते हैं
जमीन पर आंच सुलगाकर दिखाएं ?

 इतनी हिम्मत की  तो  आप देखेंगे-
"कुकुरमुत्ते" कि तरह उग आये ये
"तथाकथित" कवि धीरे धीरे
"लुप्तप्राय" हो जाते है .

Patang

पतंग के पीछे
बदहवास से भागते कुछ बच्चे
मेरी साइकिल से टकराते टकराते बचे
..मैंने सोचा
आठ आने की पतंग
के लिए ये बच्चे.......

लेकिन मैं गलत था .
बात चार आने या आठ आने की नही थी .
बात थी, उस "जीत" की ख़ुशी की-
जो बच्चों को होती  थी,
 कटी पतंग को लूटने मैं .

और उनको पता था कि उम्र मैं बड़े लोग,
साइकिल और स्कूटर आहिस्ता चलाते  हैं .

Friday, January 1, 2010

koshish

मैंने कुछ नए लोग जोड़े हैं
अपने दायरे मैं 
 कुछ नयी बातों पे अमल
...लाने की  कोशिश हो रही है .

जिन परिंदों की आवाज़
से डरता रहा मैं अब तक
अब  उनका अर्थ
...जानने  की कोशिश  हो रही है .

मुझे लगता  है  जो
और होता जो सच  है 
फर्क की खाई
...पाटने की कोशिश हो रही है .

उम्मीद है कि-
कुछ जुगनू, एक रात
छत पर टिमटिमाएंगे 
...बुलाने की कोशिश हो रही है.